सिंहासन डोल रहा है

सिंहासन डोल रहा


आधार छंद-- रुचिरा सममात्रिक मापनी मुक्त 

यति -14,16 

परिचय-- महातैथिक 30 मात्रा वर्ग भेद -- (13,46, 269) 

पदांत-- एक गुरु आवश्यक


समय चक्र यह बोल रहा, कर्म तुम्हारे तौल रहा है। 

अब सिंहासन डोल रहा, पोल तुम्हारी खोल रहा है।। 

अब भुगतो फल कर्मों का, तुम बहुत कर लिए मनमानी। 

उल्टी - सीधी चाल चली, बात किसी की इक ना मानी।।


सत्ता का ये लोभ बुरा, रहे मगन तुम अपने मद में। 

जनता का दर्द न जाना, सदा रहे अपने ही खुद में।। 

जाल बिछा कर मिथ्या का, खुद को समझ रहे तुम ज्ञानी। 

न छोटा या कोई बड़ा, जिससे चाहा उससे ठानी।।


समय - समय का चक्कर है, राज छिना अरु गई सवारी। 

जनता जब मारे धक्का, कल के राजा बने भिखारी।। 

रात जुल्म की हो लंबी, वक्त बदलता धूप निकलती। 

देख रहा सब ऊपर से, चाल काल की धीमी चलती।।


आभार - नवीन पहल - ०८.०४.२०२४🙏🏻🙏🏻

#दैनिक प्रतियोगिता हेतु कविता 

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5 Comments

Mohammed urooj khan

16-Apr-2024 11:18 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Reyaan

11-Apr-2024 06:08 PM

Nice

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Shnaya

11-Apr-2024 04:45 PM

V nice

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